ओ३म्
‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम‘ अर्थात् ‘विश्व को आर्य (श्रेष्ठ) बनाते चलो‘ इस पर आधारित आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन एवं सामाजिक कुरीतियों के विरूद्ध आन्दोलन में अग्रणी भूमिका निभाई है। आप ने तत्कालीन समाज की प्रमुख आवश्यकता शैक्षिक उन्नयन विशेष रूप से स्त्री-शिक्षा को बढ़ावा दिया परिणामस्वरूप अनेक शिक्षण-संस्थान अस्तित्व में आए। आपका मानना था कि देश की लगभग आधी आबादी स्त्रियों को शिक्षित किये बिना न तो हम देश के स्वातंत्र्य-संघर्ष में सफल हो सकते हैं न ही देश का समावेशी विकास ही संभव है। अतः स्वामी दयानन्द जी ने अनेक आर्य कन्या एवं डी0ए0वी0 विद्यालयों की स्थापना की। सन् 1975 में स्वामी जी के आदर्शों एवं मूल्यों से प्रेरित होकर आर्य कन्या महाविद्यालय भी स्थापित हुआ। यथार्थवाद, सत्यनिष्ठता, लोकोपकार, सतत ज्ञानार्जन, सदाचार एवं कर्त्तव्यनिष्ठता आदि आर्य समाज के नियमों एवं संस्कारों का महाविद्यालय की छात्राओं में प्रचार-प्रसार करना महाविद्यालय का मुख्य ध्येय है। प्राचीन भारतीय मूल्यों को अपनाने के साथ-साथ आधुनिक भारतीय एवं वैश्विक परिदृश्य में छात्राएं सफलतापूर्वक समायोजित हो सकें, आर्य कन्या महाविद्यालय इस दिशा में सतत प्रयत्नशील है। ज्ञान, विज्ञान, राजनीति, दर्शन, साहित्य, कला, संगीत, कानून, वाणिज्य, खेलकूद एवं अनेक शिक्षणेत्तर गतिविधियां आदि शिक्षा के प्रत्येक क्षेत्र में छात्राओं को सुशिक्षित करने हेतु ये महाविद्यालय कटिबद्ध है। राष्ट्रीय सेवा योजना, राष्ट्रीय कैडेट कोर एवं कम्प्यूटर-प्रशिक्षण के माध्यम से भी यह महाविद्यालय छात्राओं के सम्पूर्ण व्यक्तित्व-विकास के साथ-साथ रोजगार प्राप्ति में भी सहयोगी है। राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद् [NAAC] द्वारा महाविद्यालय को ‘बी‘ ग्रेड प्राप्त हो चुका है और शीघ्र ही ‘ए‘ ग्रेड प्राप्ति की आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है। महाविद्यालय के सभी सुयोग्य शिक्षक एवं शिक्षिकाएं अपने गुणनिष्ठ प्राध्यापन से छात्राओं को न केवल ज्ञानार्जन बल्कि जीविकोपार्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहयोग कर रहे हैं। यह महाविद्यालय ज्ञान के दीप को आलोकित करता हुआ समाज व देश के सर्वांगीण विकास में अपनी उल्लेखनीय भूमिका का निर्वहन कर रहा है।
Prof. Archana Pathak
Principal, Arya Kanya Degree College